कन्नौज की सदर सीट पर कब्जा जमाने के लिए भाजपा ने पूर्व पुलिस कमिश्नर असीम अरुण को चुनावी मैदान में उतारा है। सपा से तीन बार विधायक रह चुके अनिल दोहरे असीम अरुण को कड़ी टक्कर दे रहे हैं।
सांकेतिक तस्वीर – फोटो : MA कन्नौज
कन्नौज (यूपी) कन्नौज का सियासी मिजाज राममंदिर आंदोलन के दौरान बदला। इसी मिजाज का असर था कि 1991 में भाजपा के बनवारी लाल न केवल जीते, बल्कि 1993 और 1996 में भी जीत दर्ज कर हैट्रिक लगाई। पर, 2002 में यहां एक बार फिर सियासी मिजाज बदला और सपा से कल्यान सिंह दोहरे चुने गए। उनके बाद 2007 से 2017 तक अनिल दोहरे यहां साइकिल दौड़ाने में कामयाब रहे। लगातार चार बार सपा के इस सीट पर जीत दर्ज करने से इसे सपा का गढ़ माना जाने लगा।
इत्रनगरी के नाम मशहूर कन्नौज प्रदेश की सियासत में भी अपनी खुशबू बिखेर रही है। 1997 में कन्नौज जिला बनने के बाद कन्नौज सदर सीट पर समाजवादी पार्टी का ही कब्जा रहा है। 2017 में मोदी लहर होने के बावजूद यहां भाजपा को कामयाबी नहीं मिली। इस बार सपा के गढ़ पर कब्जा जमाने के लिए भाजपा ने पूर्व पुलिस कमिश्नर असीम अरुण को चुनावी मैदान में उतारा है। सपा से तीन बार विधायक रह चुके अनिल दोहरे को असीम अरुण कड़ी टक्कर दे रहे हैं। पिछली बार भी भाजपा ने अनिल दोहरे को कड़ी टक्कर दी थी। वह महज 2454 मतों के अंतर से जीते थे।
यहां से पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव और उनकी पत्नी डिंपल यादव सांसद रह चुकी हैं। ऐसे में यह सीट सपा के लिए प्रतिष्ठा का सवाल भी है। देखना होगा कि वर्दी छोड़कर सियासी अखाड़े में उतरे पूर्व आईपीएस अफसर असीम अरुण क्या इस सीट को भाजपा के खाते में ला पाने में कामयाब होते हैं कि नहीं। असीम अरुण के पिता श्रीराम अरुण प्रदेश के डीजीपी रह चुके हैं। बहरहाल, उनके यहां से ताल ठोकने से यह सीट यूपी ही नहीं पूरे देश में चर्चा का विषय बनी हुई है। वहीं विधायक अनिल दोहरे की बात करें तो उनके पिता बिहारी लाल दोहरे भी इस सीट से तीन बार जीत चुके हैं। पत्नी सुनीता दोहरे जिला पंचायत अध्यक्ष रहीं। अनिल दोहरे 2014 से 2017 तक एससी-एसटी कमेटी के चेयरमैन भी रहे।